A poem A DAY keeps tension away!!

I still remember the day when I saw u first
You know how your b’ful eyes pierced me deep in Heart….

U were the one, that I adore
U were everything I asked for…

Ur Eyes…
Ur Voice…
Ur Smile…
Ur Touch…
Ur everything was so pure
That was the day when I was in love for sure….

I love my eyes when u look into them
I love my name when u say it
I love my voice when u hear it

Whenever u were apart
U were close in my heart

I was an ordinary guy
I may be innocent to know what love is
The love was a mystery to me
But you helped me find who I am



Watching you was like watching a shining star,
I knew I could never reach it.
But the thing that made my dreams so tall
was the fact that Stars can fall….

Ur ‘Dreams’ were like a ‘daily soap’ for me
I cried for years n years
That was only U for whom I fought even with my dears….


My senses were playing hide n seek with me
At last my emotions overflowed….

On behalf of all my senses, my heart made a big shout
That day I couldn’t control the light of my heart coming out….

I closed my eyes n took a deep breath
As that was a matter of my life n death….
Ur voice was so sweet even when u rejected my proposal….

I told u how much I love you but u didn’t understand
That day I wanted to start a new chapter of my life but u showed me another end

I will always miss u but will never love u again in my life
The love is still a mystery to me
But you helped me find who I am….
 
GOODBYE"

As I sat here through my tears
I look back on all the months

Games we lost and won
The fun zone where we had so mch fun

Having fun with great laughter
We all lived happliy ever after

As I walked down the forums for the last time
realizing I never again here that tardy bell chime

Ditching work because we
were way too cool

I can never take back those days
and now is it to late to

Make an amends with
old best friends

For now I say ,from today til forever
Goodbye to all that came my way.
 
खुशी भी दोस्तो से है,
गम भी दोस्तो से है,

तकरार भी दोस्तो से है,
प्यार भी दोस्तो से है,

रुठना भी दोस्तो से है,
मनाना भी दोस्तो से है,

बात भी दोस्तो से है,
मिसाल भी दोस्तो से है,

नशा भी दोस्तो से है,
शाम भी दोस्तो से है,

जिन्दगी की शुरुआत भी दोस्तो से है,
जिन्दगी मे मुलाकात भी दोस्तो से है,

मौहब्बत भी दोस्तो से है,
इनायत भी दोस्तो से है,

काम भी दोस्तो से है,
नाम भी दोस्तो से है,

ख्याल भी दोस्तो से है,
अरमान भी दोस्तो से है,

ख्वाब भी दोस्तो से है,
माहौल भी दोस्तो से है,

यादे भी दोस्तो से है,
मुलाकाते भी दोस्तो से है,

सपने भी दोस्तो से है,
अपने भी दोस्तो से है,

या यूं कहो यारो,
अपनी तो दुनिया ही दोस्तो से
 
एक ऐसा गीत गाना चाह्ता हूं, मैं..
खुशी हो या गम, बस मुस्कुराना चाह्ता हूं, मैं..

दोस्तॊं से दोस्ती तो हर कोई निभाता है..
दुश्मनों को भी अपना दोस्त बनाना चाहता हूं, मैं..

जो हम उडे ऊचाई पे अकेले, तो क्या नया किया..
साथ मे हर किसी के पंख फ़ैलाना चाह्ता हूं, मैं..

वोह सोचते हैं कि मैं अकेला हूं उन्के बिना..
तन्हाई साथ है मेरे, इतना बताना चाह्ता हूं..

ए खुदा, तमन्ना बस इतनी सी है.. कबूल करना..
मुस्कुराते हुए ही तेरे पास आना चाह्ता हूं, मैं..

बस खुशी हो हर पल, और मेहकें येह गुल्शन सारा "अभी"..
हर किसी के गम को, अपना बनाना चाह्ता हूं, मैं..

एक ऐसा गीत गाना चाह्ता हूं, मैं..
खुशी हो या गम, बस मुस्कुराना चाह्ता हूं, मैं
 
When you look to the stars
you can see through all borders
be anyone you want to be
see anything you want to see
walk through blocked walls
fly over any obstacle

when you search the sky
for unbreakable levels of integrity
you feel powerful, unmatchable
stopping hunger, strife
fixing the pain in your loved ones life
putting an end to war and hate

when you walk the beach
your soul breaks all boundaries
feeling free, you sing joyously
breathing deep, the scent of release
the wondrous energy of the sea breeze
screaming as the pain seeps from you pours

Imagination, a powerful guide
to an open vein of hope
a freedom no one can steal
to dream with everything you wish for
a key from a hardened door of world hate
imagination the only escape
 
रात में उजियारे के लिए ! बस एक चाँद काफी है !! तुझे ना भुला पाने के लिए ! बस एक मुलाकात काफी है !! हवाओ में भर दे मदहोशी ! उसके लिए होंठो पर मुस्कराहट काफी है
 
It's 3am.
Somewhere.
And someone who's sold his soul to the game
has just got out of bed.
Propelled by a new way of inflicting pain.
On himself.
We are not talking about a particular game here.
Like hockey. Or soccer. Or tennis.
We're talking sport.
And why, like a restless worm.
it gnaws into a man's soul.
Pushing him to run 0.025 seconds faster.
Or jump 0.5 centimeters higher.
Or shave all his body hair to
gain 0.01 seconds in the pool.
Is this a form of madness?
Hardly.
It's worse.
It's more like a disease.
Undeterminable.
Incurable.
And contagious.
 
I've drunk to your
Health in taverns,

I've drunk to your
Health in my home,

I've drunk to your
Health so damn
many times,

That I've almost
ruined my own!
 

To laugh often and love much;
To win the respect of intelligent persons
and the affection of children;
To earn the approval of honest critics
and endure the betrayal of false friends ;
To appreciate beauty;
To find the best in others;
To give off one's self without the
slightest thought of return;
To have accomplished a task, whether
by a healthy child, a rescued soul, a
garden patch, or a redeemed social condition;
To have played and laughed with
Enthusiasm and sung with exaltation;
To know that even one life has breathed
easier because you have lived;
This is to have succeeded.
 
RISKS

To laugh is to risk appearing the fool.
To weep is to risk appearing sentimental.
To reach outfox another is to risk involvement.
To expose feelings is to risk exposing your true self.
To place your ideas, your dreams, before a crowd is to risk their loss.
To love is to risk not being loved in return.
To live is to risk dying.
To hope is to risk despair.
To try is to risk failure.
But risks must be taken, because the greatest
hazard in life is to risk nothing.
The person who risks nothing, does nothing, has
nothing, and is nothing.
They may avoid suffering and sorrow, but they
cannot learn, feel, change, grow, love, or live.
Chained by their attitudes, they are slaves,
they have forfeited their freedom.
Only a person who risks is free.
 
वो बचपन, वो यादें,
मम्*मी से छोटी-छोटी फरि*यादें,
पर अब तो...........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो फ्रॉक पहन के उछलना,
लुगड़ी के लि*ए झगड़ना,
छोटी-छोटी चैतें करके,
छम्*बों पे जा छि*पना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
मम्*मी जब दो चोटि*यां बनाती थी,
उस पर प्*यारा सा रि*बन लगाती थी,
और वो गांव की चाची,
जो मुझको चि*ढ़ाती थी,
पर अब तो...........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो दादी के अखरोट चुराना,
बड़े प्*यार से झोऌ को खाना,
और वो लालच में,
कैन्थों के काटें चुभ जाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो धान के खेतों में ऊर लगाना,
और कीचड़ में गि*र जाना,
ताई से कहकर,
बोरी का झुम्*ब बनबाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो चोबू से गि*र जाना,
छुपछुप के बर्फ के गोले खाना,
वो उछल उछल के,
तड़ल्*ल को छूने की शर्त लगाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ,
बडा सा बस्*ता लेकर स्*कूल को जाना,
चाय के बागानों से पत्*ति*यां लाना,
और बकरी के दूध के संग,
बडे चाव से दतैलु खाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो छरूड़ू में नहाना,
बागों से सेब चुराना,
और नन्*हे-नन्*हे हाथोँ से,
धौलाधार कर ऊँचाई का अनुमान लगाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ,
इस दुनि*यादारी में,
बेकारी में, कहीं खो गया हूं,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
 
कि*सी के नाजुक हाथों से
'जालि*म' दि*ल टूट गया
वो चले गए और
हमसे जमाना रूठ गया
इस गम को भुलाने को
जाम जो पकड़ा मैनें
हाय रे फूटी कि*स्*मत
मुझसे प्*याला छूट गया
ना जाम मि*ला
ना मि*ली मोहब्*बत
जो भी मैनें चाहा
उसी को कि*स्*मत ने लूट लि*या
रूस्*वाइयों के इस आलम में
जो सजदे करने मैं चला
साकी के पैमानों ने
मुझको फि*र से रोक लि*या
मयखानों की राह तकते तकते
बुतखाना पीछे छूट गया
मयखाना जब आया तो
मन ही मन मैं हर्षाया
पर तकदीर अपनी बड़ी नि*राली
बटुआ था सारा खाली
ना पैमाने छलके
ना हुई बन्*दगी
हसरतों ने ऐसा मारा
सबकुछ पीछे छूट गया
हार गया जब सब से
सोचा खुदकुशी मैं कर लूं
बड़ी मुद्धतों से 'जालि*म'
मुब्*ति*ल्*ग-जीस्*त हो फंदा बनाया
फि*र इस आरजू में
कहीं लौट ना आँए सनम कभी
मौत से बगाबत कर दी
इन्*तजार में कयामत गुजर गई
ना वो आए ना मइयत उठी
कुछ एसा अफ़साना हुआ
ना जि*न्*दा हूं ना दफन हुआ
 
काश! मैं परि*पूर्ण होता
अकेला सा महसूस करता हूं
सौ करोड़ से ज्*यादा की भीड़ में
इसलि*ए सोचता हूं
काश! मैं परि*पूर्ण होता
हर काम अपने दम पे करता
कदम बढ़ाता समाज कल्*याण की राह पर
पर कभी कि*सी से मदद ना मांगता
सोचता हूं मैं दीपक होता
अ*ंधि*यारा मि*टाता इस जग का
फि*र ख्*याल आता है कि* तब भी मैं कैसे सम्*पूर्ण होता
तल पे अन्*धेरा रहता नि*त कालि*मा उगलता
काश! मैं परि*पूर्ण होता
हर काम अपने दम पे करता
सोचता हूं मैं दरि*या होता
इस जग की प्*यास बुझाता
कि*न्*तु यह सम्*भव नहीं
जल से भरा रहता है समन्*दर
पर नमकीन पानी को कौन पीता
काश! मैं परि*पूर्ण होता
हर काम अपने दम पे करता
सोचता हूं मैं इक सि*तारा होता
वि*शाल गगन में नि*शा में चमकता
पर यह भी व्*यर्थ राहगीर को रोशनी देने में
तब भी असमर्थ रहता
फि*र सोचता हूं
काश मैं सोमरस होता
मधुशाला में नि*त मैं छलकता
गमगीन यादों को भुलाकर कुछ पल चैन से बसरने देता
पर अफसोस तब भी घर एजाड़ने के लि*ए जुमले सहता
काश! मैं परि*पूर्ण होता
हर काम अपने दम पे करता
पर लगता है इस जग में कोई नहीं सम्*पूर्ण है
यहीं तक की खुदा भी अधूरा ही है
तभी उसके संसार में दंगा-फसाद उसी के नाम पर होता है
सच तो यह है 'ज़ालि*म'
कि* स्*वप्*न भी अ*पूर्ण होता है
इसलि*ए कोई नहीं परि*पूर्ण होता है
 
क्*या हुआ? तुम क्*यों घबरा रहे हो
तुम बेरोजगार हो?
या कोई चल बसा है?
कुछ तो बताओ,
तुम्*हारी चिंता का कारण क्*या है?

तुम कहते हो 'जालि*म'
तो तुम्*हे बताता हूं
पल पल की खबर रखने वाले
गूढ़ ज्ञानी खबरी ने कहा है
कि* बापू मर गए हैं
सबको छोड़ के तर गए हैं
लेकि*न यह कैसे हो सकता है
बि*न बापू गान्*धी के
भारत कैसे जी सकता है
अंहि*सा, धर्म, और प्रति*ज्ञा
बि*न बापू के
सत्*याग्रह कैसे चल सकता है

भाई तुम्*हारी जानकारी है आधी
राजघाट में बनी हुई है उनकी समाधी

पर उन सि*द्धान्*तो का क्*या
जो बापू ने दि*ए थे
नेताजी सुभाष से अलंकृत
बापू राष्*ट्रपि*ता बने थे

पर अब तो बस केवल
वोटों कि चोटों पर
बापू दि*खते हैं नोटों पर
हर कोई अब गाली देता है
अधनगें फकीर की आधी धोती पर
युवा चुटकुले कहता है

परन्*तु यह कैसे सम्*भव है
गान्*धी के चि*त्रों पर
फूलों का हार चढ़ता है
साबरमती में हर दि*न
धूप और दीपक जलता है
हर कोई बापू बापू चि*ल्*लाता है
गान्*धीगि*री का आन्दोलन चलवाता है

तुम बच्*चे हो मेरे भाई
यह जग बड़ा नि*राला है
बाहर से उजला उजला
अन्*दर से काला है
बापू की राह पे चलोगे
तो कुछ नहीं होने वाला है
अब मैं चलता हूं
मुझे बापू पे भाषण देने जाना है

हाय यह क्*या हो रहा है
हर कोई घड़याली आसूं रो रहा है
अब मैं कि*ससे पुछूं
बापू आज कहां हैं
या फि*र खबरी के मुताबि*क
बापू सचमुच मर चुके हैं
 
उधर देखो, हि*मालय क्*यों डगमगा रहा है
ना कोई भूकंप आया है
ना कि*सी तूफान में ताकत है
फि*र क्*या है
जो इस पहाड़ को हि*ला रहा है
शायद यह नाराज है
हमने जो खून बहाया है
इसकी गोद में
आतंक का दामन छुपाया है
भारत को चीरा
और पाकि*स्*तान को बनाया है
खैर थी इतनी भी
पर हमने दुश्*मनी को बढ़ाया है
यही वजह है शायद
आज हि*मालय हि*लता ही जा रहा है
पहले खीचं डाली सरहद
फि*र आसमां को बाटां
मां की छाती से बच्*चे को छीना
मजहब के नाम पर
यह क्*या गुनाह कि*या
रास ना आया तभी
अडि*ग गि*री डगमगा रहा है
सि*यासत के गलि*यारों से
गदंगी की बू आती है
जो अमन के बजाए
कारगि*ल को लाती है
ना छुपने दो उन फरि*श्*तों को
ना झुकने दो उन अरमानों कों
जिन्होने दोस्*ती का दि*या जलाया है
वरना देख लो अभी से
हि*मालय डगमगा रहा है
घर जले थे पंजाब में
तपि*श है अभी उस आग में
देख लो चाहे तुम
महीने लग जाते हैं पहुचने में
अमृतसर और लाहौ्र के
चन्*द लम्*हों के फासले में
ना जाने हश्र क्*या हो्गा
यह हि*मालय हि*लता ही जा रहा है
गलती जो कर दी थी कभी
ना दोहराओ तुम अभी
छा जाने दो खुशी
उन बुझे बुझे से चेहरों पर
जो दो ना पायें हैं जी भर
बि*छड़े हैं जबसे दि*ल जि*गर
कैसे भूल जाते हो
दर्द धरती के स्*वर्ग का
इंसान हैं वो
जीने का हक उन्हे भी दो
दोस्ती का पैगाम लाऔ
तोड़ डालो मुहं उस तीसरे का
जो हुंकारता है दूर से
और हमारे बीच टागं अड़ाता है
देर ना हो जाए कहीं
क्*योंकि* हि*मालय डगमगा रहा है
सब रास्*ते खोल दो
मिटा दो सरहद की जंजीरों को
भारत-पाक चलो उस राह पर
जहां अमन नजर आता है
कहीं एसा ना हो जाए 'ज़ालि*म'
अपवादों की धरती पे
टूट जाए यह पहाड़
और मि*टा दे सरहद सदा के लि*ए
यह हो जाएगा
क्*योंकि* हि*मालय हि*लता ही जा रहा है
 
जरा सुनो मेरे प्रश्*न को हल कर दो
तुमने तो पी.एच.डी. कि*या है
डि*ग्रि*यों से तुम्*हारा घर भरा है
मौलवी साहब रूकि*ए
अच्*छा ज्*योति*षी जी आप ही सुनि*ए
अरे कोई तो मुझे बताओ
यह जो खून बि*खरा पड़ा है
मज़हबी दगों की भेटं चढ़ा है
यह खून कि*सका है
हि*न्*दू का है या कि*सी मुसलमान भाई का
कि*सी सि*क्*ख का है या फि*र इसाई का
किसी और का है तो भी बताओ
जरा सुनो मेरे प्रश्*न को हल कर दो
ऐसी भी क्*या खता हो गई
जो तुम सुनते भी नहीं
जरा सी बात पूछता हूं
यूं फर्क बता देते हो लाखों
दगों के वक्*त बताते हो
अब भी बता दो मुझको
जरा इस खून की पहचान करो
फायदे में रहोगे तुम
बि*मार हो जाओगे कभी
तो देंगें खून तुम्*हे तुम्*हारे मजहब का ही
पर अफसोस
तुम नहीं बता सकते
यह जो सुर्ख हुई है धरती
इस पर खून पड़ा है
वो इक इन्*सान का है
इसलि*ए चुप हो जाओ
खामोश
क्योंकि मजहब नहीं सि*खाता
आपस में बैर करना
क्योंकि खून से बड़कर रि*श्*ता कोई नहीं
फि*र तुम सब का तो खून एक सा है
नहीं मानते हो तुम अगर
'जालि*म' तर्क से समझाओ
और मेरे प्रश्*न को हल कर दो
लेकि*न तुम नहीं कर सकते
इसलि*ए हर जीवन में खुशी का रंग भर दो
 
मयखानों में पीने वाले भी क्*या पीते हैं
चन्*द पलों के नशे के बाद फि*र दुनि*या में जीते हैं
मदहोश तो वो होते हैं 'जालि*म' जो सदा नशे में रहते हैं
जाम नहीं छलकाते वो महबूबा की आखों से जो पीते हैं
मयखानों में जाने वाले पैमानों को आजमाने वाले
जाम खत्*म हो जाने पर तन्*हा तन्*हा रह जाते हैं
चैन तो मिलता है उनको जो बि*ना कि*सी पैमाने के
आखों में आखें डाले अपनी प्*यास बुझाते हैं
कुछ एसे भी होते हैं 'जालि*म' जो रोते हैं चि*ल्*लाते हैं
दि*ल के टूटने के बाद मयखाने चले जाते हैं
वो पागल नहीं जानते मयखाने के जाम पल भर याद भुलाते हैं
नशा उतरता है जैसे ही 'जालि*म' फि*र अश्*क बहाते हैं
मयखानों मे जलने वालो रफ़ता रफ़ता मरने वालो
क्*यों काफि*र जग के जुमले सहते जाते हो
जामों से क्यों खुद को तड़पाते हो
नि*त जीने का नशे में रहने का इक राज तुम्*हे बतलाता हूं
ना कह देना कि*सी से कि* मैं भी इसको अपनाता हूं
नशे के आदि* हो तो पी तो महबूबा आखों से पी लो
जाम नहीं, पैमाने नहीं दि*न रात फि*र जन्*नत में जी लो
 
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